नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा इस विधि और मंत्रों के साथ करें

नवरात्रि 2021 का नौ दिन का अनुष्ठान कर रहे देवी भक्त नवरात्रि के दूसरे दिन या​नी 14 अप्रेल को माता के देवी ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करेंगे। इस स्वरूप की पूजा करते समय देवी भक्त याद रखें कि माता को सफेद फूल चढ़ाएं और हवन करते समय लोंग तथा इलायची का प्रयोग अवश्य करें। इससे भक्तों के दुश्मनों का नाश होगा। माता का भोग मिश्री और किशमिश से लगाएं।

कठिन तपस्या से मिला ब्रह्मचारिणी नाम

मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्षमाला और कमंडल सुसज्जित हैं मां का यह स्‍वरूप आपको ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम मिल गया।

इसलिए एक नाम अपर्णा भी मिल गया

एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताते हुए कहा कि भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे।

ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें। इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें. देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें।

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का मंत्र

या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..

ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी.
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते..

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

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